श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिवस में बालकृष्ण की लीलाओं ने मोहा मन, इंद्रदेव भी हुए नतमस्तक



माधौगढ़ जालौन। ग्राम अकबरपुरा स्थित बाला जी मंदिर परिसर में गत शुक्रवार को संगीतमय श्रीमद्भागवत कथा के पांचवें दिवस का आयोजन भक्ति, श्रद्धा और सांस्कृतिक चेतना का सजीव संगम बन गया। यह धर्मोत्सव दीपेंद्र सिंह 'मोनू' एवं शिवेन्द्र सिंह 'गोलू', पुत्रगण श्री इंद्रभान सिंह द्वारा समर्पण भाव से आयोजित किया जा रहा है। कथावाचक पंडित अरुण कुमार अवस्थी जी ने श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं का जो भावपूर्ण चित्रण प्रस्तुत किया, वह न केवल श्रोताओं के हृदय को छू गया बल्कि सम्पूर्ण वातावरण को आध्यात्मिक उल्लास से भर गया। पूतना वध, अका-बका असुर संहार, माखन चोरी, गोपियों के वस्त्रहरण, कालिया मर्दन और गोवर्धन पूजा जैसे प्रसंगों ने बालकृष्ण की लीलाओं को मानो सजीव कर दिया। जैसे ही कथा में राधा रानी एवं गोपियों संग प्रभु के प्रेमरस की झलक आई, पंडाल में उपस्थित जनसमूह भक्ति में विभोर होकर नृत्य एवं कीर्तन में लीन हो गया। भक्ति की यह बयार मानो समूचे ग्राम को दिव्यता से सराबोर कर गई।

प्राकृतिक व्यवधान या दिव्य संकेत?

कथा के उसी क्षण, जब गोवर्धन पूजन प्रसंग प्रस्तुत हो रहा था, मौसम ने करवट ली — बादल गरजे और इंद्रदेव के क्रुद्ध स्वरूप में मूसलधार वर्षा प्रारंभ हो गई। यह दृश्य मानो साक्षात भागवत कथा के प्रसंग को धरातल पर उतार रहा था।

किन्तु, आस्था की नींव पर खड़ा यह आयोजन किसी बाधा से विचलित नहीं हुआ। श्रद्धालु बारिश में भी अडिग खड़े रहे, भक्ति में डटे रहे, और प्रभु नाम का कीर्तन निर्बाध रूप से गूंजता रहा। अंततः, जैसे कथा में श्रीकृष्ण ने गोवर्धन उठाकर ब्रजवासियों की रक्षा की, उसी प्रकार प्रभु की कृपा से कुछ ही क्षणों में वर्षा रुक गई — इंद्रदेव निःशब्द, निस्तब्ध और नतमस्तक प्रतीत हुए।

> "जहाँ विश्वास अडिग होता है, वहाँ इंद्रदेव भी सिर झुकाते हैं।"

अवस्थी जी ने धार्मिक संदेश देते हुए कहा किसी तीर्थ या कुंभ में स्नान के बाद अपने गंदे वस्त्र उस पवित्र नदी में नही धोना चाहिए।

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